हाँ भई मैं खबरीलाल ही हूँ
नहीं, मैं दलाल नहीं हूँ
और न ही बिचौलिया हूँ
हाँ, अगर आप चाहें तो
मुझे एक गुड मैनेजर
एक्सपर्ट या को-आर्डीनेटर
कह या सोच सकते हैं !
हाँ अब मैं भी लिखते-पढ़ते
झूठ-सच बयां करते करते
खिलाडियों का खिलाड़ी हो गया हूँ
कब किसको पटकनी देना
और किसको पंदौली दे उठाना है
इशारों ही इशारों में समझ कर
शह-मात की चालें चल रहा हूँ !
क्यों ..... क्योंकि मैं भी
कभी कभी मंत्रियों-अफसरों
और उद्योगपतियों के साथ
उठ-बैठ व सांठ-गांठ कर
छोटे-मोटे काम बेख़ौफ़
निपटा-सुलझा-उलझा रहा हूँ
और मैनेजमेंट गुरु बन गया हूँ !
भला इसमें बुराई ही क्या है
नेता-अफसर-मंत्री सभी तो
यही सब कुछ कर रहे हैं
छोटे-बड़ों को मैनेज कर रहे हैं
मुझे भी लगा, मौक़ा मिला
मैं भी कूद पडा मैदान में
अब गुरुओं का गुरु बन गया हूँ !!!
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भला इसमें बुराई ही क्या है
नेता-अफसर-मंत्री सभी तो
यही सब कुछ कर रहे हैं
छोटे-बड़ों को मैनेज कर रहे हैं
मुझे भी लगा, मौक़ा मिला
मैं भी कूद पडा मैदान में
अब गुरुओं का गुरु बन गया हूँ
ये सब तो आज का चलन बन गया है.
सामयिक और सुन्दर कविता
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