आज गरीबी को
दाने दाने के लिए
भटकते देखा है !
धूप रही
बरसात रही
पर गरीब को
पीठ पे बोझा
ढोते देखा है !
आज गरीबी को
खुद की हालत पे
गुमसुम गुमसुम
रोते देखा है !
दो रोटी के
चार टुकडे कर
बच्चों को पेट
भरते देखा है !
कहाँ दवा
दुआओं पर ही
बच्चों का बुखार
ठीक होते देखा है !
घाव नहीं
पर भूख से
बच्चों को
बिलखते देखा है !
बारिस से
भीग गया कमरा
दीवालों से सटकर
झपकियाँ लेते देखा है !
भूख बला थी
लोगों को जीते जी
भूख से
मरते देखा है !
और बचा था
कुछ देखन को
तो जिन्दों को
मुर्दों सा
जीते देखा है !
आज गरीबी को
सड़क पर
दम तोड़ते देखा है !!
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