बुधवार, 8 मार्च 2017

''यह सब मर्दों का खेला है''

मेरा मानना है कि कुछ शातिर-लेखक किसी स्त्री के लिखने-पढ़ने और आगे आने के विरोधी हो सकते हैं, अधिकतर प्रोत्साहित करने वाले होते हैं। कुछ महिलाओं की आलोचना इसलिए हुई कि उनके साहित्य में अश्लीलता परोसी गई। यह देखादेखी हुआ। 'पुरुष जब नैतिकता के कपड़े उतार सकता है तो हम ही क्यों पहने रहें', इस सोच से ग्रस्त लेखिकाओं ने अपनी कहानियों में गालियों का और सेक्स का खुल कर इस्तेमाल किया। एक सम्पादक ने महिलाओं को बोल्ड बनने के नाम पर बरगलाया। तब शालिनी नामक विदुषी ने साजिश को समझ कर एक लेख लिखा कि ''यह सब मर्दों का खेला है' । उन्होंने अनेक लेखिकाओं के अश्लील कथा अंश दिए और बताया कि कथा में इनकी जरूरत नहीं थी। अनेक कथालेखिकाओं की कहानियों में अश्लीलता नहीं दीखती। बोल्ड होने का मतलब अश्लील होना तो नहीं!! जितनी भी महान लेखिकाएं आज चर्चित है, वे मनुष्यता को जगाने वाले साहितय के कारण चर्चित हैं। । महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, आशापूर्ण देवी, महाश्वेता, शिवानी, मालती जोशी, सन्तोष श्रीवास्तव आदि कुछ लेखिकाओं के साहित्य को देखें, वे करुणा और संस्कार जगाते हैं। साहित्य का धर्म यही है। साहित्य स्त्री पुरुष नही होता। वह केवल साहित्य होता है। वर्चस्व की लड़ाई में टुच्चे लोग पड़े होते हैं। ये लोग पुरुष भी हैं और स्त्री भी। विकारो से ग्रस्त कोई भी हो सकता है। मेरा मानना है की स्त्री-मन अधिक निर्मल होता है। उसे निर्मल ही बने रहना है। इस दिशा में अनेक लेखिकाएँ लगी हैं। उनका वन्दन। आज महिला दिवस है इसलिए कविता के माध्यम से भी अपनी बात रखूँगा। देखें-
मैं नारी हूँ, जग की जननी, मुझसे ये दुनिया सुन्दर है
मुझको जो अपमानित करता वो नर पापी है बदतर है
मुझ पे जो दृष्टि बुरी डाले, सच बोलूँ वो इंसान नहीं
जो नारी को देवी समझे, उसका जीवन ही बेहतर है
जो 'अरी' नहीं, वह नारी है,नर पे तो अक्सर भारी है
नारी है बगिया फूलों की, वो इस समाज का जेवर है
फूलों को मत मसलो मूरख, ये तो आँगन की है शोभा
जो समझे ना इसका मतलब वह नर तो केवल वानर है
नारी है केवल देह नहीं, इसके दिल को देखो थोड़ा
जहाँ देवता बसते हैं वो तो इक पावन मंदर है
नारी है कोमल काया से, पर उसको मत कमजोर कहो
दुर्गा, काली, या रणचण्डी , ये वक्त पड़ा तो खंजर है.

Table Of Contents