शनिवार, 12 जून 2010

चिकित्सा से गजल तक एक सफर

हमेशा एक मंद मंद मुसकुराता चेहरा .
 एक अच्छे चिकित्सक की निशानी


 एक अच्छे चिकित्सक की निशानी
 नाम है डॉ संजय दानी .
अभी दुर्ग शहर , छत्तीसगढ़ में नाक कान गला रोग विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत .
बहुमुखी प्रतिभा के धनी . पढ़ाई में अग्रणी रहने के साथ साथ खेल और रंगमंच में भी दखल.
लोग देश छोड़ जाते हैं इन्हे अपनी धरा से इतना प्रेम की PGI chandigarh में मिले दाखले को ठुकराकर रायपुर से ही अपनी आगे की पढ़ाई करने का निर्णय :).
कुछ समय पहले एक विवाह कार्यक्रम में मुलाक़ात हुई तो पता चला जनाब शायर लहुट गए हैं और इसके लिए बाकायदा उर्दू सीखी.
अपने  इस नए कदम के बारे में खुद इनके शब्दों में :
 2004 से जब मै अग्रवाल समाज दुर्ग का महामन्त्री बना तब  समाज की पत्रिका
मेरे प्रयासों से निकाली  गयी ।उसी वक़्त मेरी कलम कविताओं की ओर आकर्शित
हुई। पहले हलकी फ़ुल्की कवितायें फ़िर गज़लों ने मुझे अपने नागपाष मे जकड़
लिया।मेरी 2 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं1"मेरी गज़ल-मेरी हम शक्ल
(2007)" व "खुदा खैर करे(2009)"। आज की तारीख मे मेरे पास लगभग 8 किताबों
के लायक materials  हैं। 3री किताब का मसौदा "वैभव प्रकाशन" रायपुर को
छपने दिया जा चुका है जिसका टाईटिल "चश्मे-बद्दूर" है.

 तो क्या कहते हैं हुजूर 
जाइएगा  इनके ब्लाग पर एक बार जरूर 

मुझे गजल सुननी हमेशा अच्छी लगी उम्मीद है आपको भी पसंद आयेगी

1 टिप्पणी:

शरद कोकास ने कहा…

डॉ. संजय दानी मेरे मित्र हैं और उनकी गज़लों का मैं मुरीद हूँ । उनकी कुछ गज़लों को सबसे पहले सुनने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ है ।

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