सोमवार, 5 जुलाई 2010

लोकतंत्र रूपी मायानगरी

चलो अच्छा रहा
आज भारत बंद था
कुछ लोग
घर से ही नहीं निकले
निकलते तो दो-चार
बेवजह सडक दुर्घटना
में मारे जाते

कुछ लूट के शिकार
होने से बच गए
तो कुछ किडनेप
होते होते रह गए

इससे भी बडी खबर
तो ये है कि
कुछ महिलाएं
छेडछाड, छींटाकशी
से बची रहीं
और कुछेक तो
बलात्कार की शिकार होने से
कम-से-कम एक दिन के लिये
तो बच ही गईं

शुक्र है बुद्धिजीवियों का
जो एक दिन के लिये
तो भलाई का कदम उठाया

बुराई कहीं नजर आई
तो बस सडकों पर
देश के कुछेक कर्णधार
बल प्रदर्शन कर
तोड-फ़ोड, मारा-मारी करते
दुकानें बंद कराते
व गरीवों को सताते दिखे
तो कुछ यह सब होते देखता दिखे

धन्य हैं लोकतंत्र के कर्णधार
जो भारत बंद ... बंद ... बंद
के समर्थन व विरोध में
हो हल्ला कर रहे हैं

रही बात मंहगाई की
वो तो खूब
फ़ल-फ़ूल रही है
दिन-दूनी, रात-चौगनी
सीना तान कर
एक एक कदम
आगे बढ रही है

भारत बंद तो होता आ रहा है
आगे भी होता रहेगा
आज विपक्षी रोटी सेंक रहे हैं
तो कल पक्षियों को भी
रोटी सेंकने का भरपूर मौका मिलेगा
ये लोकतंत्र रूपी भट्टा है यारो
जिस में अंगार हरदम
गरमा गरम मिलेगा
धन्य है ये लोकतंत्र रूपी मायानगरी
धन्य है... धन्य है ... धन्य है।

1 टिप्पणी:

शरद कोकास ने कहा…

इसे कहते हैं त्वरित कविता ।

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