पहले के दिग्गज फिल्म निर्देशकों को अपने पर पूरा विश्वास और भरोसा होता था। उनके नाम और प्रोडक्शन की बनी फिल्म का लोग इंतजार करते थे। उसमे कौन काम कर रहा है यह बात उतने मायने नहीं रखती थी। कसी हुई पटकथा और सधे निर्देशन से उनकी फिल्में सदा धूम मचाती रहती थीं। अपनी कला पर पूर्ण विश्वास होने के कारण ऐसे निर्देशक कभी किसी प्रकार का समझौता नहीं करते थे। ऐसे ही फिल्म निर्देशक थे वही. शांताराम। उन्हीं से जुड़ी एक घटना का जिक्र है -
उन दिनों शांतारामजी डा. कोटनीस पर एक फिल्म बना रहे थे "डा। कोटनीस की अमर कहानी।" जिसमें उन दिनों के दिग्गज तथा प्रथम श्रेणी के नायक मोतीलाल को लेना तय किया गया था। मोतीलाल ने उनका प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया था। शांतारामजी ने उन्हें मुंहमांगी रकम भी दे दी थी। पहले दिन जब सारी बातें तय हो गयीं तो मोतीलाल ने अपने सिगरेट केस से सिगरेट निकाली और वहीं पीने लगे। शांतारामजी बहुत अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। उनका नियम था कि स्टुडियो में कोई धुम्रपान नहीं करेगा। उन्होंने यह बात मोतीलाल से बताई और उनसे ऐसा ना करने को कहा। मोतीलाल को यह बात खल गयी, उन्होंने कहा कि सिगरेट तो मैं यहीं पिऊंगा।
शांतारामजी ने उसी समय सारे अनुबंध खत्म कर डाले और मोतीलाल को फिल्म से अलग कर दिया। फिर खुद ही कोटनीस की भूमिका निभायी।
क्या आज के इक्के-दुक्के लोगों को छोड़ किसी में ऐसी हिम्मत हो सकती है ?
1 टिप्पणी:
सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये.......
“20 वर्षों बाद मिला मासूम केवल डॉन से"
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
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