कौन कहता है नक्सलवाद समस्या नहीं एक विचारधारा है, वो कौनसा बुद्धिजीवी वर्ग है या वे कौन से मानव अधिकार समर्थक हैं जो यह कहते हैं कि नक्सलवाद विचारधारा है .... क्या वे इसे प्रमाणित कर सकेंगे ? किसी भी लोकतंत्र में "विचारधारा या आंदोलन" हम उसे कह सकते हैं जो सार्वजनिक रूप से अपना पक्ष रखे .... न कि बंदूकें हाथ में लेकर जंगल में छिप-छिप कर मारकाट, विस्फ़ोट कर जन-धन को क्षतिकारित करे ।
यदि अपने देश में लोकतंत्र न होकर निरंकुश शासन अथवा तानाशाही प्रथा का बोलबाला होता तो यह कहा जा सकता था कि हाथ में बंदूकें जायज हैं ..... पर लोकतंत्र में बंदूकें आपराधिक मांसिकता दर्शित करती हैं, अपराध का बोध कराती हैं ... बंदूकें हाथ में लेकर, सार्वजनिक रूप से ग्रामीणों को पुलिस का मुखबिर बता कर फ़ांसी पर लटका कर या कत्लेआम कर, भय व दहशत का माहौल पैदा कर भोले-भाले आदिवासी ग्रामीणों को अपना समर्थक बना लेना ... कौन कहता है यह प्रसंशनीय कार्य है ? ... कनपटी पर बंदूक रख कर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, कलेक्टर, एसपी किसी से भी कुछ भी कार्य संपादित कराया जाना संभव है फ़िर ये तो आदिवासी ग्रामीण हैं ।
अगर कुछ तथाकथित लोग इसे विचारधारा ही मानते हैं तो वे ये बतायें कि वर्तमान में नक्सलवाद के क्या सिद्धांत, रूपरेखा, उद्देश्य हैं जिस पर नक्सलवाद काम कर रहा है .... दो-चार ऎसे कार्य भी परिलक्षित नहीं होते जो जनहित में किये गये हों, पर हिंसक वारदातें उनकी विचारधारा बयां कर रही हैं .... आगजनी, लूटपाट, डकैती, हत्याएं हर युग - हर काल में होती रही हैं और शायद आगे भी होती रहें .... पर समाज सुधार व व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन के लिये बनाये गये किसी भी ढांचे ने ऎसा नहीं किया होगा जो आज नक्सलवाद के नाम पर हो रहा है .... इस रास्ते पर चल कर वह कहां पहुंचना चाहते हैं .... क्या यह रास्ता एक अंधेरी गुफ़ा से निकल कर दूसरी अंधेरी गुफ़ा में जाकर समाप्त नहीं होता !
नक्सलवादी ढांचे के सदस्यों, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर रहे बुद्धिजीवियों से यह प्रश्न है कि वे बताएं, नक्सलवाद ने क्या-क्या रचनात्मक कार्य किये हैं और क्या-क्या कर रहे हैं ..... शायद वे जवाब में निरुत्तर हो जायें ... क्योंकि यदि कोई रचनात्मक कार्य हो रहे होते तो वे कार्य दिखाई देते.... दिखाई देते तो ये प्रश्न ही नहीं उठता .... पर नक्सलवाद के कारनामें ... कत्लेआम ... लूटपाट ... मारकाट ... बारूदी सुरंगें ... विस्फ़ोट ... आगजनी ... जगजाहिर हैं ... अगर फ़िर भी कोई कहता है कि नक्सलवाद विचारधारा है तो बेहद निंदनीय है।
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
कौन कहता है नक्सलवाद एक विचारधारा है !
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'उदय' की कलम से
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5 टिप्पणियां:
अगर विचारधारा है तो वाकई निन्दनीय!
ये आतंकवादी हैं| स्कूल उड़ाते हैं, लोगों के काम धंधे को नुकसान पहुंचाते हैं, वसूली करते हैं|
और अगर कोई इन का चेला चपाटा पढ़ रहा हो, तो वह पाकिस्तान और चीन के बारे में कुछ ध्यान से पढ़े|
ये आतंकवादी हैं| स्कूल उड़ाते हैं, लोगों के काम धंधे को नुकसान पहुंचाते हैं, वसूली करते हैं|
और अगर कोई इन का चेला चपाटा पढ़ रहा हो, तो वह पाकिस्तान और चीन के बारे में कुछ ध्यान से पढ़े|
नक्सलियों की सिर्फ एक ही विचारधारा है गरीब,अनपढ़,उपेक्षित आदिवासियों को बहकाकर,धमकाकर उनके कंधे पर बन्दुक रखकर सत्ता हथियाने का कुचक्र रचना | और इस सबकी जिम्मेदार है भारतीय छद्म,भ्रष्ट,मौकापरस्त,सेकुलर राजनीती ,जिनमे सबसे बड़ा योगदानहै अपने आपको सबसे बड़ा देशभक्त बताने वाली कांग्रेस का |
विचार तो और किसी धारा मे बह गये यह तो विनाश धारा है। जिसकी निंदा ही की जा सकती है।
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