शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

बहुओं ने उठाई अर्थी और पुत्री ने दी मुखाग्नि

छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहर की एक घटना

सौजन्य :  दैनिक नवभारत, रायपुर







7 टिप्‍पणियां:

nilze silvia ने कहा…

स्त्री को बराबरी देने का बहुत अच्छा उदाहरण
धन्यबाद

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

इस प्रयोग ने स्त्रियों को बराबरी का मान दिया है। श्रद्धेय दिवंगत गुप्त जी इस अनुकरणीय वसीयत के लिए सदैव जाने जाएँगे।

vandana gupta ने कहा…

ek nayi soch aur ek nayi pahal ko disha di hai.

कडुवासच ने कहा…

.... एक प्रसंशनीय व अनुकरणीय कदम है, बधाईंया!!!!

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक कदम!!

निर्मला कपिला ने कहा…

गुपत जी का और परिवार का ये कदम प्रसंशनीय व अनुकरणीय है,धन्यवाद्

शरद कोकास ने कहा…

दाऊ निरंजन लाल गुप्त जी के चार पुत्र हैं लेकिन उन्होने कभी भी पुत्रियों को और बहुओं को पुत्रों से कम नहीं माना । वे हम जैसे, उम्र में उनसे बहुत छोटे लेखकों को भी बहुत सम्मान देते थे और यह उनकी जीवन शैली में शामिल था । उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि ।- शरद कोकास ,दुर्ग

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